यह पुस्तक यह तो दावा नहीं करती है कि भोजपुरी प्रदेश से होने वाले श्रम प्रवसन का पूरा इतिहास यही हो सकता है। पर हां, मौखिकता के जरिये ही उन्हें सही मायनों में समझा जा सकता है। यह दावा यहां जरूर हैमौखिक स्रोतों के सहारे यह पुस्तक प्रवसन से प्रभावित भोजपुरिया समाज व संस्कृति के विविध तहों तक जाती हैमौखिक स्रोतों के भीतर सांस लेते प्रवासी श्रम इतिहास लेखन बहुत कम है और जो है सो एकांगी है। अधिकांशतः उपनिवेशवादी एवं राष्ट्रवादी है। अर्थात् इस नजरिये में इस प्रदेश से प्रवास करने वाले श्रमिकों एवं पीछे छुटे स्वजनों के लिए या तो सिर्फ सुख ही सुख, सफलता ही सफलता या फिर दुख, पीड़ा, अकेलापन, शोषण जैसे पद ही प्रयुक्त हुए हैं। यह पुस्तक उनके सफलता एवं त्रासदी की जटिल कहानी सुनाती है।
यह पुस्तक यह तो दावा नहीं करती है कि भोजपुरी प्रदेश से होने वाले श्रम प्रवसन का पूरा इतिहास यही हो सकता है। पर हां, मौखिकता के जरिये ही उन्हें सही मायनों में समझा जा सकता है। यह दावा यहां जरूर हैमौखिक स्रोतों के सहारे यह पुस्तक प्रवसन से प्रभावित भोजपुरिया समाज व संस्कृति के विविध तहों तक जाती हैमौखिक स्रोतों के भीतर सांस लेते प्रवासी श्रम इतिहास लेखन बहुत कम है और जो है सो एकांगी है। अधिकांशतः उपनिवेशवादी एवं राष्ट्रवादी है। अर्थात् इस नजरिये में इस प्रदेश से प्रवास करने वाले श्रमिकों एवं पीछे छुटे स्वजनों के लिए या तो सिर्फ सुख ही सुख, सफलता ही सफलता या फिर दुख, पीड़ा, अकेलापन, शोषण जैसे पद ही प्रयुक्त हुए हैं। यह पुस्तक उनके सफलता एवं त्रासदी की जटिल कहानी सुनाती है।