इस पुस्तक में ऐसे नाटकों को भी शामिल किया गया है जिनका मंचन नहीं हुआ दूसरी तरफ उन प्रस्तुतियों को भी लिया गया है, जो पुस्तक रूप में नहीं आई हैं, लेकिन दलित नाटक या रंगमंच के लिए उनकी पूरी ईमानदारी रही। एक रंगकर्मी होने के नाते वे शिद्दत के साथ अपने इस सामाजिक बदलाव के अभियान में जुड़े रहे। यहाँ विशेष रूप में मैं बताना चाहूंगा कि दलित अस्मिता वाले नाटकों पर ही इस शोध सम्बन्धी पुस्तक में अधिक ज़ोर दिया गया है। चाहे वे मराठी के नाटक हों या हिन्दी के। वैसी कृतियां रास्ता दिखाने वाली हों, भटकाने वाली नहीं। लेखक ने इस शोधकार्य में 2009 तक और उससे पूर्व की नाट्य सम्बन्धी विवरण शामिल किये गये हैं।
इस पुस्तक में ऐसे नाटकों को भी शामिल किया गया है जिनका मंचन नहीं हुआ दूसरी तरफ उन प्रस्तुतियों को भी लिया गया है, जो पुस्तक रूप में नहीं आई हैं, लेकिन दलित नाटक या रंगमंच के लिए उनकी पूरी ईमानदारी रही। एक रंगकर्मी होने के नाते वे शिद्दत के साथ अपने इस सामाजिक बदलाव के अभियान में जुड़े रहे। यहाँ विशेष रूप में मैं बताना चाहूंगा कि दलित अस्मिता वाले नाटकों पर ही इस शोध सम्बन्धी पुस्तक में अधिक ज़ोर दिया गया है। चाहे वे मराठी के नाटक हों या हिन्दी के। वैसी कृतियां रास्ता दिखाने वाली हों, भटकाने वाली नहीं। लेखक ने इस शोधकार्य में 2009 तक और उससे पूर्व की नाट्य सम्बन्धी विवरण शामिल किये गये हैं।